पीलीभीत: मन मे हो विश्वास और काम की हो लगन तो सफलता मिलना निश्चित है जिसे सार्थक किया जनपद पीलीभीत की बंगाली बाहुल्य न्यूरिया के मामा भांजे ने। दोनों ने मिलकर सपनो का जो संसार बनाया उससे खुद को आत्मनिर्भर तो बनाया दुसरो को भी रोजगार मुहैया कराया। मामा भांजे की मेहनत से तैयार किया गया बटन मशरूम का कारोबार अब मण्डल के जिलों से फैलकर शरहद के पार नेपाल के काडमांडू तक अदब के साथ जाना और पहचाना जाने लगा है। मामा भांजे ने मिलकर पहले बटन मशरूम का कारखाना लगाया था जिससे उन्हें पहचान मिली अब नए किस्म की मशरूम ढींगरी (ओएस्टर) की खेती भी करने में जुट गए हैं।

पीलीभीत मुख्यालय से मात्र पन्द्रह किलोमीटर के फासले पर स्थित कस्वा न्यूरिया से सटी बंगाली बाहुल्य न्यूरिया कालोनी में मामा भांजे के नाम से मशरूम की खेती का कारखाना है। असल मे यह कारखाना तो नहीं है पर यह सूक्ष्म कुटीर उधोग जरूर है। मामा देवदत्त मण्डल पुत्र अभिलाष मण्डल उम्र 56 वर्ष भांजा सुशांत मण्डल पुत्र कार्तिक मण्डल उम्र 38 वर्ष शुरुआती दौर में कोई काम जमाना चाहते थे तव ना तो कोई जरिया बन रहा था और ना ही कोई उपाय तव ही मामा भांजे रोजगार की तलाश में उत्तराखण्ड के पंतनगर में पहुँच गए इसी दौरान पंतनगर में कृषि मेला लगा तो दोनों कृषि मेले में पहुँच गए और वहां एक डॉक्टर से दोनों की मुलाकात हुई काम करने की इच्छा थी पर रुपये की तंगी डॉक्टर से परिचय हुआ बात आगे बढ़ी तो डॉक्टर ने उन्हें मशरूम की खेती करने की सलाह दी और बताया मशरूम की खेती कम लागत में कर अधिक मुनाफा कमा सकते हो।
डॉक्टर की ही सलाह पर हिमाचल और हरियाणा में मशरूम की खेती की ट्रेंनिग लेने गए और जब वहां से लौटे तो अपनी ही कालोनी में पैतीस हजार की लागत से मशरूम का कारखाना लगाया और पीछे मुड़कर नही देखा। यह लगभग सत्रह वर्ष पहले की बात है अब उनका कारोबार पचास लाख से ऊपर पहुँच गया है एक की जगह अब दो कारखाने बना लिए हैं।
शुरुआती दौर में मुश्किलें भी बेशुमार आई
शुरुआत में दस किलो मशरूम को बेचने में पापड़ बेलने पड़ गए थे। पूंजी कम थी इस लिए नुकसान झेलने की छमता भी नही थी मशरूम का मार्किट नया था। जैसे-जैसे जानकारी हुई तो कारोबार बड़ा। जहां दस किलो मशरूम की खपत नही थी अब कुंटलो में बटन मशरूम की पैदावार हो रही है और बचती नही है। अब तो यह माल मण्डल के सभी जिलों में पीलीभीत से लखीनपुर, बरेली से शाहजहांपुर के अलाबा दिल्ली इतना ही नही न्यूरिया की मशरूम की डिमांड नेपाल के काठमांडू तक है।
मशरूम की पैदावार में राजस्थान की मिट्टी है कारगर

इस मिट्टी के प्रयोग से बटन मशरूम की पैदावार बड़ी है। अब नए किस्म की मशरूम के उत्पादन पर मामा भांजे नजर गड़ाए है। इस बार नए किस्म की ढींगरी (ओएस्टर) मशरूम तैयार करने में जुट गए है।
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अब ढींगरी ओएस्टर मशरूम की तैयारी

मामा देवदत्त मण्डल और भांजे सुशांत मण्डल ने बटन मशरूम के जरिए हर घर मे पहचान बना ली है और उसकी खपत का मार्किट भी तैयार है नए सीज़न में चौदह सौ कुंतल बटन मशरूम खपने को तैयार की जा रही है तो अब एक नयी किस्म की मशरूम की पैदावार करने में भी जुट गए हैं मामा भांजे।भांजे सुशांत ने बताया बटन मशरूम का कारोबार तो बढ़ ही रहा है अब प्रयोग के तौर पर ढींगरी (ओएस्टर) मशरूम की खेती पर भी ध्यान केंद्रित किया है यह मशरूम खाने में तो स्वादिष्ट है ही इसका औषदि बनाने में भी किया जाता है।यह मशरूम ड्राई होती है इसे सही तरह से सहेजा जा सकता है।
मशरूम की खेती के लिए एसीयुक्त कारखाने का सपना अधर में लटका
आमतौर पर मशरूम की खेती सर्दी के मौसम के लिए मुफीद है।मशरूम की खेती घास फूस की बखारी बनाकर की जाती है जो सितंबर के महीने से शुरू होकर मार्च माह तक ही सीमित रहती है इसका दायरा बड़े डिमांड के हिसाब से मशरूम की पैदावार बड़ाई जाए इसके लिए 12 माह काम करने का विचार मन मे आया जानकारों से सलाह ली गई तो घास फूस की बखारी की जगह पक्की दीबार के साथ एसीयुक्त कारखाना तैयार करने की सलाह मिली तो पक्का कारखाना तैयार भी करा लिया एक वर्ष हो गया एसी लगाने के लिए पैसे की तंगी आई तो बैंक से लोन के लिए फाइल तैयार की लेकिन बैंक में फाइल ही लटक गई जिसके चलते फिलहाल एसीयुक्त मशरूम का कारखाने का सपना अधर में ही लटका हुआ है।
मशरूम की खेती खुद का रोजगार तो बनी दुसरो को भी दे रहे है रोजगार
मामा देवदत्त और भांजा सुशांत मिल कर दो खुद के मशरूम के कारखाने चलाते है जिसमे मशरूम की खेती की जाती है इस काम को करने के लिए इनके साथ साथ साठ लोगों को और रोजगार मिल रहा है इतना ही नही इनके बाद क्षेत्र भर में 250 अलग अलग स्थानों में मशरूम के कारखाने लग चुके है जिन्हें मामा भांजे ट्रेनिंग देते है साथ ही उन्हें सारा मटेरियल भी खुद देते है।